भारतीय कृषि में कई वर्षों से आधुनिक तकनीक और उर्वरक आधारित खेती का प्रमुख स्थान रहा है, लेकिन इसके बावजूद किसान अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट, जल संसाधनों की कमी और फसलों पर कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण किसानों के समक्ष स्थायित्व की बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। ऐसे में जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) और प्राकृतिक कृषि (नेचुरल फार्मिंग) जैसे विकल्प भारतीय कृषि के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
भारतीय कृषि में जैविक और प्राकृतिक कृषि की आवश्यकता
भारत में कृषि क्षेत्र सदियों से मुख्य आय का स्रोत रहा है। लेकिन कृषि के अत्यधिक रासायनिक निर्भरता ने धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुँचाया है, जिससे किसानों की आय पर भी प्रभाव पड़ा है। ऐसी परिस्थिति में जैविक और प्राकृतिक खेती के तरीके एक स्वस्थ, सतत और पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित विकल्प बनकर उभर रहे हैं। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और हार्मोनों का उपयोग नहीं किया जाता, जबकि प्राकृतिक कृषि में स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके फसल उत्पादन किया जाता है, जिससे मिट्टी की संरचना और जैव विविधता में सुधार होता है।
जैविक खेती: एक स्वस्थ और पर्यावरणीय विकल्प
जैविक खेती एक ऐसा तरीका है जिसमें जैविक खाद, गोबर, कंपोस्ट, हरी खाद और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके फसल उगाई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना और पर्यावरण के प्रति सुरक्षित खेती करना है।
जैविक खेती के लाभ:
1. मिट्टी की उर्वरता में सुधार:
जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खाद का उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य और उसकी उर्वरता को बढ़ाता है।
2. पर्यावरण संरक्षण:
जैविक खेती में रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग न होने के कारण यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं होती। इससे जल प्रदूषण और भूमि क्षरण की समस्याएँ कम होती हैं।
3. स्वस्थ भोजन का स्रोत:
जैविक फसलों में हानिकारक रसायन नहीं होते, जिससे उपभोक्ताओं को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन मिलता है।
4. बाजार में उच्च मांग:
जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग के चलते जैविक खेती करने वाले किसानों को अधिक मुनाफा होता है।
हालांकि, जैविक खेती में समय और संसाधनों का अधिक निवेश होता है और इसके परिणाम तुरंत दिखाई नहीं देते, लेकिन दीर्घकालिक लाभ इसे एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं।
प्राकृतिक खेती: शून्य लागत पर अधिक पैदावार
प्राकृतिक खेती, जिसे "ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग" (ZBNF) भी कहा जाता है, भारतीय कृषि में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन के लिए सक्षम बनाना है। इस पद्धति को भारतीय कृषि वैज्ञानिक सुभाष पालेकर ने बढ़ावा दिया, जो किसानों को प्राकृतिक संसाधनों जैसे गोबर, गोमूत्र, और अन्य घरेलू कचरे का उपयोग करके खेती करने की सलाह देते हैं।
प्राकृतिक खेती के लाभ:
1. शून्य लागत:
इस खेती में किसानों को रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे लागत बहुत कम हो जाती है।
2. पर्यावरणीय सुरक्षा:
प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता सुरक्षित रहती है।
3. स्थायी उत्पादन:
प्राकृतिक खेती में मिट्टी की संरचना बेहतर रहती है, जिससे दीर्घकालिक और स्थायी उत्पादन होता है।
4. किसानों की आत्मनिर्भरता:
इस खेती में किसान स्थानीय संसाधनों पर निर्भर रहते हैं, जिससे वे बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं होते।
जैविक और प्राकृतिक कृषि के प्रति सरकारी प्रयास
भारत सरकार ने जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएँ हैं:
1. परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
यह योजना जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए चलाई जा रही है। इसके तहत किसानों को जैविक कृषि सामग्री खरीदने और जैविक प्रमाणन प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। यह योजना देशभर में जैविक खेती के क्षेत्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
2. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती मिशन
पूर्वोत्तर भारत की जलवायु और भूमि की अनुकूलता के कारण जैविक खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। इस मिशन के तहत सरकार पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे वहाँ की उपज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है।
3. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
इस योजना का उद्देश्य सूखे क्षेत्रों में जल प्रबंधन में सुधार करना है। इससे किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक पानी की आपूर्ति में सहायता मिल रही है।
जैविक और प्राकृतिक कृषि के प्रति बढ़ती जागरूकता
भारतीय किसानों के बीच जैविक और प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से किसान अब इन तकनीकों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। कई एनजीओ और सरकारी संस्थान भी किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती की तकनीकें सिखाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहे हैं।
बाजार में जैविक उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। उपभोक्ता अब हानिकारक रसायनों से मुक्त और पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देने लगे हैं। इसके चलते जैविक उत्पादों के लिए उच्च मूल्य मिल रहा है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
हालांकि जैविक और प्राकृतिक खेती के कई लाभ हैं, लेकिन इसके रास्ते में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। जैविक खेती में शुरुआती निवेश और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। साथ ही, किसानों को जैविक प्रमाणन प्राप्त करने में समय लगता है, जिससे उनकी उपज को उच्च कीमत पर बेचा जा सके। प्राकृतिक खेती में किसानों को अपनी पारंपरिक आदतों को छोड़कर नई विधियों को अपनाना पड़ता है, जो कई बार चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सरकार, वैज्ञानिकों, और एनजीओ के सहयोग से इन चुनौतियों को पार किया जा सकता है। किसानों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और बाजार तक पहुँच सुनिश्चित करके जैविक और प्राकृतिक खेती को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
जैविक और प्राकृतिक खेती भारतीय कृषि के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण समाधान हो सकते हैं। इन पद्धतियों से न केवल किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है, बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला जा सकता है। भारतीय कृषि में स्थिरता और दीर्घकालिक लाभ के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती का प्रसार आवश्यक है, और इसके लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना होगा।
भारत की कृषि में इस परिवर्तन से न केवल किसानों की ज़िंदगी में सुधार होगा, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकेगा कि कैसे सतत और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों से भविष्य में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
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